Gaudiya Vaishnavism Tilaka: How To Apply, Importance
गौड़ीय वैष्णविस्म, जिसे चैतन्य वैष्णविस्म भी कहा जाता है, भारतीय संत चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं पर आधारित एक धार्मिक परंपरा है। इस परंपरा में, माध्व तिलक का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे भक्त अपने माथे पर लगाते हैं।
तिलक का महत्व:
तिलक वैष्णव समुदाय में एक पवित्र चिह्न माना जाता है। यह भक्त के समर्पण और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी निष्ठा का प्रतीक है। जब भक्त तिलक लगाते हैं, तो वह अपनी अंतरात्मा को भगवान कृष्ण के समर्पण में लगाते हैं। यह एक विशेष प्रकार की भावना है जिसे भक्त अपने आप में महसूस करते हैं।
तिलक का अर्थ भी है कि भक्त अपने जीवन में धार्मिकता, पवित्रता और भगवान कृष्ण के प्रति अपनी समर्पण भावना को महत्व देते हैं। यह एक विशेष प्रकार की चिह्न है जो भक्त के जीवन में उसकी धार्मिकता को प्रकट करता है।
गौड़ीय वैष्णविस्म माध्व तिलक कैसे लगाएं:
गोपीचंदन की प्राप्ति: सबसे पहले, आपको गोपीचंदन चाहिए होगा, जिसे वैष्णव तिलक लगाने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह एक प्रकार की मिट्टी होती है जिसे विशेष स्थलों से प्राप्त किया जाता है।
गोपीचंदन का पेस्ट तैयार करना: गोपीचंदन को थोड़े से जल में घोलकर पेस्ट बना लें। यह पेस्ट चिकना और समान रूप में होना चाहिए ताकि यह आसानी से लगाया जा सके।
तिलक लगाने की प्रक्रिया: अब अपनी अंगुली पर थोड़ा पेस्ट लें और माथे के मध्य भाग में ऊपर से नीचे की ओर एक लंबी रेखा खींचें। इसके बाद, दोनों भौहों पर वृत्ताकार चिह्न बनाएं।
तिलक सूखने दें: तिलक को अच्छे से सूखने दें। जब तक तिलक सूख नहीं जाता, तब तक उसे छूना नहीं चाहिए।
- तिलक को शरीर के 12 भागों पर लगाया जाता है।
- तिलक को लगाते समय विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
गौड़ीय वैष्णविस्म तिलक का धार्मिक महत्व:
गौड़ीय वैष्णविस्म में तिलक का विशेष महत्व है। यह तिलक न केवल भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भक्त अपने जीवन में कितनी गहरी धार्मिकता और निष्ठा लाता है।
जब भक्त तिलक लगाते हैं, तो वह अपनी अंतरात्मा को भगवान कृष्ण के चरणों में समर्पित करते हैं। यह एक विशेष प्रकार की भावना है जिसे भक्त अपने आप में महसूस करते हैं। यह भावना उन्हें भगवान कृष्ण के प्रति और भी निकट लाती है।
विभिन्न वैष्णव संप्रदायों में तिलक की शैलियाँ
- वल्लभ, रुद्र-संप्रदाय में एक लाल रंग की वर्टिकल लाइन के रूप में तिलक पहना जाता है।
- माध्व संप्रदाय में तिलक के दो वर्टिकल लाइन होती हैं।
- गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में तिलक वृंदावन की मिट्टी से बनता है।
- श्री वैष्णव परंपरा में तिलक के दो लाइन होती हैं जो नारायण के पैरों का प्रतीक होती हैं।
तिलक पहनने की अनिवार्यता
- तिलक पहनने के लिए दीक्षा गुरु से दीक्षा लेना आवश्यक नहीं है।
- हर वैष्णव को हमेशा तिलक पहनना चाहिए।
निष्कर्ष:
गौड़ीय वैष्णविस्म में तिलक का महत्व अद्वितीय है। यह तिलक न केवल भक्त के भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भक्त अपने जीवन में कितनी गहरी धार्मिकता और निष्ठा लाता है। इसलिए, जब भी हम तिलक लगाते हैं या देखते हैं, हमें यह समझना चाहिए कि यह एक पवित्र और धार्मिक प्रतीक है जो हमें हमारे धार्मिक मार्ग पर मार्गदर्शन करता है तिलक वैष्णव समुदाय में एक महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है जो व्यक्ति के शरीर को भगवान के मंदिर के रूप में दर्शाता है। यह व्यक्ति को उसकी भक्ति और समर्पण की याद दिलाता है। विभिन्न वैष्णव संप्रदायों में तिलक की विभिन्न शैलियाँ होती हैं जो उनके सिद्धांत और उपास्य देवता को प्रकट करती हैं।
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